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लेखनी प्रतियोगिता -16-Aug-2022

*क्या पहचान मेरी...* 

कल कोई पहचान नहीं होगी मेरी
बूंद हूं में आज बारिश की
आंसू बन जाऊं पलकों का तेरी
जब भी तूने कोई ख्वाहिश की

कल कोई पहचान नहीं होगी मेरी
जब शाख से टूट जाऊंगा मैं
रख लेना मुझे तुम याद बनाकर
जब फिर उड़ता फिरूं सुनी इन राहों में

कल कोई पहचान नहीं होगी मेरी
ढल जाऊंगा बनकर मैं सूरज
ख्याल ना आए कभी अकेला हूं मैं
आवाज देना मुझे जब भी हो जरूरत

कल कोई पहचान नहीं होगी मेरी
पंछी बन उड़ जाऊंगा लेकर सारी यादें
ना सोचना भूल जाएगा वह तुम्हें
उसे भी याद है तुझ से जुड़ी हर बातें

कल कोई पहचान नहीं होगी मेरी
मांगे तु कुछ और टूट जाऊंगा बनके में तारा
कर नहीं सकता मैं रोशन दुनिया को मगर
कर जाऊंगा मैं रोशन जग तेरा सारा

Written and composed by 
Dr.Ravindrapal Singh Muzalda (KaviRp)

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10 Comments

shweta soni

18-Aug-2022 12:24 PM

Nice

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Abhinav ji

17-Aug-2022 08:41 AM

Nice 👍

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बहुत ही सुंदर सृजन

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